
Human Rights Day 10 Dec 2025
- S S Mahali

- 5 दिन पहले
- 5 मिनट पठन
“भारत में मानवाधिकार के संरक्षण में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सार्थकता एवं भूमिका”

मानवाधिकारों की अवधारणा मानव सभ्यता जितनी पुरानी है, जिसका मूल आधार मानव की गरिमा, समानता और स्वतंत्रता है। प्राचीन भारत के वेदों, उपनिषदों और अशोक के शिलालेखों में मानवता और अहिंसा के सिद्धांत स्पष्ट मिलते हैं। 1215 की Magna Carta ने पहली बार राजा को भी कानून के अधीन किया। 1776 की अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा और 1789 की फ़्रांसीसी क्रांति ने आधुनिक मानवाधिकारों को वैश्विक स्वरूप दिया।
औद्योगिक क्रांति ने श्रमिक अधिकारों को जन्म दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध की त्रासदी के बाद संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर 1948 को UDHR अपनाया, जिसमें 30 सार्वभौमिक अधिकार शामिल हैं।
भारत ने संविधान (1950) में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया और 1993 में NHRC की स्थापना कर मानवाधिकार संरक्षण को और मजबूत किया। आज मानवाधिकार डिजिटल और पर्यावरणीय क्षेत्रों तक भी विस्तारित हो रहे हैं।
मुख्य बिंदु:
प्राचीन सभ्यताओं में मानवता का विचार
Magna Carta (1215)
अमेरिकी व फ्रांसीसी घोषणाएँ
UDHR (1948) – 30 अधिकार
भारतीय संविधान (1950)
NHRC (1993) स्थापना

आज के इस महत्वपूर्ण सेमिनार में हमारे बीच माननीय मुख्य अतिथि श्री मृत्युंजय महतो, सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, दुमका; विशिष्ट वक्ता प्रो. (डॉ.) प्रभात कुमार पाणी, कुलपति, नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय; अतिथि श्री ब्रज मोहन कुमार, पूर्व IAS; तथा वंदनीय श्री मनोज कुमार सिंह, प्रतिनिधि, राज्यसभा सांसद उपस्थित हैं।
मानवाधिकार वह मूलभूत अधिकार हैं, जो किसी सरकार, संस्था या समाज द्वारा प्रदान नहीं किए जाते, बल्कि मनुष्य के गर्भ में आने के क्षण से लेकर मृत्यु तक उसे प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते हैं। यह अधिकार किसी भी प्रकार की राष्ट्रीयता, धर्म, जाति, लिंग, भाषा या सामाजिक पहचान से मुक्त होते हैं। हर मनुष्य को सम्मानपूर्वक जीने और सम्मानपूर्वक मृत्यु प्राप्त करने का अधिकार है। इसी दृष्टिकोण को दुनिया ने 10 दिसंबर 1948 को UDHR – Universal Declaration of Human Rights के माध्यम से वैश्विक मान्यता दी। इसके 30 अनुच्छेद मानव जीवन, स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, न्याय, सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, अभिव्यक्ति, परिवार, संस्कृति एवं गरिमा जैसे सभी पहलुओं को सुरक्षित करते हैं। भारत ने इन्हें स्वीकार कर अपने संवैधानिक ढांचे में शामिल किया, जिसके संरक्षण हेतु विभिन्न संस्थानों की स्थापना की गई, जिनमें सबसे प्रमुख संस्था है – राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)।

NHRC की स्थापना इसलिए की गई क्योंकि मानवाधिकारों का हनन तब शुरू होता है, जब व्यक्ति को वह सम्मान, स्वतंत्रता और सुरक्षा नहीं मिलती जो उसे स्वाभाविक रूप से मिलनी चाहिए। आयोग का दायित्व है कि वह किसी भी शिकायत पर तत्काल संज्ञान ले, जांच करे और पीड़ित को प्रभावी राहत दिलाए। आयोग गिरफ्तारी, हिरासत, पुलिस अत्याचार, लैंगिक उत्पीड़न, मानव तस्करी, बाल श्रम, सामाजिक भेदभाव, वृद्ध एवं दिव्यांगों के अधिकार जैसे विषयों पर गंभीरता से कार्य करता है। NHRC को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी सरकारी संस्था, जेल, होम, अस्पताल या आश्रय गृह का निरीक्षण कर सके और सुधार के लिए सरकार को सिफारिश दे सके। हालांकि, NHRC के नियमों के अनुसार, किसी भी घटना की शिकायत एक वर्ष के भीतर की जानी चाहिए; अन्यथा आयोग को जांच का अधिकार नहीं रहता।

भारत का संविधान भी मानवाधिकारों का अत्यंत सशक्त संरक्षक है, विशेषकर अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ सिर्फ जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि गरिमामय जीवन का अधिकार है, जिसमें सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान और भयमुक्त वातावरण शामिल है। इसी प्रकार बच्चों के अधिकारों की रक्षा हेतु भारत सरकार ने NCPCR (National Commission for Protection of Child Rights) की स्थापना की, जो हर बच्चे की सुरक्षा, विकास, शिक्षा और सम्मान का ध्यान रखती है।
मानवाधिकारों के हनन का मूल कारण यह है कि समाज में "मानव" का निर्माण कमजोर पड़ रहा है। चोरी, हत्या, शोषण, अपराध, अत्याचार इसलिए थम नहीं रहे हैं क्योंकि समाज के नैतिक मूल्य, संवेदनशीलता और मानवीय चेतना कम होती जा रही है। जब तक इंसान मानवता के अर्थ को नहीं समझेगा, तब तक मानवाधिकारों का हनन होता रहेगा। इसलिए हमें पहले मानव बनाने पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे में सबसे बड़ी जिम्मेदारी प्रशासन, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की होती है। यदि अधिकारी, मंत्री और शासकीय व्यवस्था अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाएँ, तो अधिकांश मानवाधिकार उल्लंघन स्वतः समाप्त हो सकते हैं। न्यायपालिका भी पीड़ित व्यक्ति को राहत देने के लिए एक मजबूत स्तंभ की तरह कार्य करती है। किसी भी महिला, वृद्ध, अशक्त या पीड़ित व्यक्ति को यदि उत्पीड़न का सामना करना पड़े, तो वह मानवाधिकार आयोग और न्यायालय में अपील कर सकता है, यह उसका वैधानिक अधिकार है।
NHRC के साथ-साथ राज्यों में State Human Rights Commissions की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। झारखंड में JHRC (Jharkhand Human Rights Commission) के प्रभावी और पूर्ण पुनर्गठन की अत्यंत आवश्यकता है ताकि प्रदेश में मानवाधिकारों के संरक्षण को सशक्त और व्यवस्थित किया जा सके। आदिवासी, ग्रामीण, मजदूर, महिलाएँ, बच्चे, वृद्ध और कमजोर तबका अधिक संरक्षण चाहता है, इसलिए JHRC का सक्रिय, पारदर्शी और संवेदनशील होना बहुत जरूरी है।

मानवाधिकार जागरूकता समाज में तभी बढ़ेगी, जब इसे शिक्षा का हिस्सा बनाया जाएगा। मेरा मानना है कि कक्षा 9 और 10 से ही स्कूल के छात्रों को मानवाधिकारों की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। बचपन से जागरूकता आने पर ही वे बड़े होकर संवेदनशील नागरिक बनेंगे, जो दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने का संकल्प ले सकें।

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस, 10 दिसंबर, दुनिया को यह याद दिलाता है कि मानवाधिकार केवल कानूनी दस्तावेज नहीं हैं, यह मनुष्य की गरिमा, स्वतंत्रता और सम्मान की आत्मा हैं। इस दिन को अधिक से अधिक प्रचारित, प्रसारित और जन-जागरूकता का माध्यम बनाना चाहिए, ताकि समाज मानवाधिकारों के महत्व को समझ सके और उन्हें लागू करने में अपनी जिम्मेदारी निभा सके। अंततः मानवाधिकार संरक्षण सरकार या किसी संस्था का अकेला कार्य नहीं है; यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। जब हम स्वयं भी इन अधिकारों का सम्मान करेंगे और दूसरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाएँगे, तभी एक न्यायपूर्ण, संवेदनशील और मानवीय भारत का निर्माण संभव होगा।

मानवाधिकार केवल कानून नहीं, बल्कि मानवता की आत्मा हैं और इनकी रक्षा हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
“मानवाधिकार सिर्फ अधिकार नहीं… मानवता की आत्मा हैं। आइए, हर इंसान के सम्मान और न्याय की रक्षा के लिए एक साथ चले।”
जोहार 🙏
S S Mahali 🏹
Human Rights Association, Jharkhand
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