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कितनी सुरक्षित है आदिवासियों की जमीन ?

  • लेखक की तस्वीर: S S Mahali
    S S Mahali
  • 2 दिन पहले
  • 3 मिनट पठन

आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा तोहै, लेकिन कई चुनौतियाँ भी हैं। आदिवासियों के भूमि अधिकारों को वन अधिकार अधिनियम जैसे कानूनों द्वारा संरक्षित करने का प्रयास किया गया है, जो व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वामित्व, शोषण और जंगलों में निवास को सुरक्षित करने का उद्देश्य रखते हैं। इसके अतिरिक्त, झारखंड जैसे राज्यों में छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (CNT Act) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (SPT Act) जैसे कानून आदिवासियों की भूमि को गैर-आदिवासियों द्वारा खरीदने से रोकते हैं, हालांकि इन कानूनों में संशोधन की मांग भी उठ रही है।

1️⃣ क्या संविधान ने आदिवासियों को पुश्तैनी जमीन पर विशेष अधिकार दिए हैं?

जवाब हैं - हाँ।


मुख्य संवैधानिक प्रावधान:

🔹 अनुच्छेद 19(5): सरकार जनहित में भूमि हस्तांतरण पर योजना आधारित प्रतिबंध लगा सकती है, जिससे आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी लोग जमीन न खरीद सकें।

🔹 अनुच्छेद 244(1): 5वीं अनुसूची लागू है, जिसके अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभा की अनुमति के बिना भूमि का हस्तांतरण नहीं हो सकता।

🔹 अनुच्छेद 13(3)(a): 'कानून' में कोई भी रिवाज और परंपरा शामिल है, जिससे आदिवासी परंपरागत अधिकारों की सुरक्षा होती है।

🔹 अनुच्छेद 31 (अब 300A): किसी की संपत्ति बिना कानून और उचित मुआवजे के छीनी नहीं जा सकती।

🔹 PESA Act 1996: ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य है।

🔹 Forest Rights Act 2006: वनभूमि पर पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करता है।


2️⃣ फिर भी जमीन क्यों छीनी जा रही है?

✔️ नियंत्रण और निगरानी की विफलता:

– प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत से भूमाफिया और निजी कंपनियां फर्जी दस्तावेजों से जमीन हथिया लेती हैं।

– ग्राम सभाओं की राय को केवल औपचारिकता बना दिया गया है, असली निर्णय प्रशासन लेता है।


✔️ पुनर्वास नीति की विफलता:

– बड़ी परियोजनाओं (खनन, बांध, उद्योग) में बिना उचित पुनर्वास और मुआवजे के लोगों को बेदखल किया जाता है।

– कई राज्यों में आदिवासी भूमि बचाने के लिए बनी सीएनटी-SPT जैसी एक्ट को भी कागजों में दरकिनार कर दिया जाता है।


✔️ कानून का क्रियान्वयन कमजोर:

– 5वीं अनुसूची के तहत राज्यपाल को शक्तियां मिली हैं, पर वह उनका प्रयोग नहीं करते।

– कोर्ट में केस लंबा चलता है, जिससे न्याय नहीं मिल पाता।

– पुलिस-प्रशासन आदिवासियों के पक्ष में खड़े होने के बजाय कंपनियों और शक्तिशाली लोगों के पक्ष में खड़े रहते हैं।


3️⃣ यदि सुरक्षा है तो आदिवासी असुरक्षित क्यों हैं?

✅ संविधान ने सुरक्षा दी है, पर इच्छाशक्ति की कमी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता के कारण वह सुरक्षा ज़मीनी हकीकत नहीं बन पाई।


✅ यदि आदिवासी सुरक्षित होते, – उनकी ज़मीन नहीं छीनी जाती।

– उनकी ग्रामसभा की सहमति के बिना कोई जमीन नहीं ली जाती।

– उन्हें मुआवजा और पुनर्वास दिया जाता।

– उनके जल, जंगल और जमीन पर उनके नियंत्रण को छीना नहीं जाता।


4️⃣ इंसाफ कहां है?

🔹 कानून किताबों में हैं, पर न्याय पाने की प्रक्रिया कमजोर है।

🔹 न्यायपालिका में जाने पर लंबी प्रक्रिया और खर्च के कारण गरीब आदिवासी लड़ नहीं पाते।

🔹 ग्रामसभा की ताकत सिर्फ दिखावा बन गई है।

🔹 भूमि अधिग्रहण में विस्थापन और मुआवजा में न्याय नहीं है।


संविधान और कानून में आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था है, पर यह तभी तक है जब तक व्यवस्था ईमानदार, जवाबदेह और पारदर्शी हो।


आज सबसे जरूरी है:

✅ ग्रामसभाओं को असली ताकत देना।

✅ प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत पर अंकुश लगाना।

✅ मुआवजा और पुनर्वास को बाध्यकारी बनाना।

✅ आदिवासियों को कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की जानकारी और कानूनी सहायता देना। तभी 'इंसाफ' ज़मीनी हकीकत बनेगा।

ऐसे ही

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