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आदिवासी और आदिवासियत समाप्ति की ओर

  • लेखक की तस्वीर: S S Mahali
    S S Mahali
  • 10 घंटे पहले
  • 4 मिनट पठन

क्या सच में आदिवासी और आदिवासियत समाप्ति कि कगार पर है❓


✍️ धर्म बदला जा सकता हैं, जाति नहीं

आदिवासी समुदाय की सच्चाई 📢


ऐसा ही एक मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा हैं।

एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को ST प्रमाण पत्र दिया गया हैं क्या ऐसा हो सकता हैं?


हिंदू धर्म मानने वालों को ST प्रमाणपत्र दिया जाता है।

ईसाई धर्म मानने वालों को ST प्रमाणपत्र दिया जाता है।

तो

मुस्लिम धर्म मानने वालों को ST प्रमाणपत्र क्यों नहीं दिया जाता है❓


भारत के संविधान और सामाजिक व्यवस्था के अनुसार, धर्म परिवर्तन से जाति नहीं बदलती। विशेष रूप से आदिवासी (अनुसूचित जनजाति - ST) समुदाय के संदर्भ में यह बात पूरी तरह लागू होती है।


आज भी अनेक आदिवासी परिवार समय और परिस्थिति के अनुसार विभिन्न धर्मों को अपना चुके हैं, लेकिन उनकी जातीय पहचान वही बनी हुई है। आइए इसे उदाहरणों से समझें —


🔹 1. आदिवासी हिंदू बने – जाति नहीं बदली

जो आदिवासी लोग सरना या प्रकृति पूजक रहे हैं, आज समय के साथ कुछ लोग हिंदू धर्म अपनाते हैं।

परंतु उनका जनजातीय मूल, रीति-रिवाज, और वंशानुगत पहचान नहीं बदलती।

👉 उन्हें आज भी ST प्रमाणपत्र दिया जाता है।


🔹 2. आदिवासी ईसाई बने – जाति नहीं बदली

कुछ आदिवासी समाज के लोग ईसाई धर्म को अपना चुके हैं। उन्होंने अपने नाम या सरनेम भी बदल लिए होंगे, लेकिन उनका सामाजिक वंश आज भी आदिवासी ही माना जाता है।

👉 उन्हें भी ST प्रमाणपत्र जारी होता है।


🔹 3. आदिवासी मुस्लिम बने – जाति नहीं बदली

देश के कई क्षेत्रों, जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप आदि में बहुत से आदिवासी समुदाय के लोग इस्लाम धर्म में हैं। वे धार्मिक रूप से मुस्लिम हैं, परंतु सामाजिक रूप से आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं।

👉 उन्हें भी ST प्रमाणपत्र दिया जाता है।


🔹 4. आदिवासी बौद्ध बने – जाति नहीं बदली

अनेक आदिवासी परिवारों ने बौद्ध धर्म भी स्वीकार किया है, परंतु उनकी जनजातीय स्थिति बनी रहती है। उनकी पारंपरिक संस्कृति और सामाजिक पहचान को संविधान मान्यता देता है।

👉 ऐसे लोग भी ST प्रमाणपत्र दिया जा रहा है।


✅ धर्म बदलने से जाति नहीं बदलती।

✅ आदिवासी समाज की जातीय पहचान जन्म से निर्धारित होती है, धर्म से नहीं।

✅ संविधान और सरकारी नीतियाँ इस बात को मान्यता देती हैं कि कोई भी आदिवासी व्यक्ति, चाहे किसी भी धर्म में हो, वह ST का हकदार है यदि वह सूचीबद्ध जनजाति से संबंधित है।


धर्म l जाती प्रमाण पत्र

हिन्दू : ST Certificate

इस्लाम : ST Certificate

ईसाई : ST Certificate

बौद्ध : ST Certificate


✍️ मूल विषय:

" क्या धर्म बदलने से जाति नहीं बदलती"

– यह कथन न केवल सामाजिक चिंतन का विषय है, बल्कि भारत की संवैधानिक और प्रशासनिक व्यवस्था में भी इसका गहरा प्रभाव है, खासकर जाति प्रमाण पत्र (Caste Certificate) के संदर्भ में।


1. संविधान और जाति का संबंध

भारत में "जाति" एक सामाजिक पहचान है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। जाति का धर्म से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, खासकर जनजातीय (Tribal/आदिवासी) समुदायों के लिए।


📌 अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों की सूची बनाई गई है। इस सूची में जिन समुदायों को शामिल किया गया है, वे उनकी नस्लीय, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर हैं, ना कि धर्म के।


🧾 2. सरकार की नीति व जाति प्रमाण पत्र

सरकारें यह मानती हैं कि —

> 🔸 धर्मांतरण से जाति नहीं बदलती।

🔸 यदि कोई व्यक्ति ईसाई या मुस्लिम बन जाता है, परंतु वह अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से संबंधित है, और उसके पूर्वज उसी जनजाति से आते हैं, तो वह व्यक्ति कुछ शर्तों के साथ ST प्रमाणपत्र का पात्र हो सकता है।


🌍 3. जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप का उदाहरण

उचित और प्रासंगिक उदाहरण —

🟢 जम्मू-कश्मीर:

यहाँ गुज्जर और बकरवाल जैसे समुदाय हैं जो मुस्लिम होते हुए भी अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल हैं।


उन्हें सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ भी मिलता है।


🟢 लक्षद्वीप:

यहाँ की अधिकांश आबादी मुस्लिम है, परंतु वे Scheduled Tribes की सूची में आते हैं।


उनका धर्म मुस्लिम है, परंतु उनका आदिवासी स्वरूप और पिछड़ापन उन्हें ST बनाता है।


⚖️ 4. नाम और सरनेम बदलना

धर्म परिवर्तन के बाद नाम बदलना व्यक्तिगत आस्था का विषय है।


लेकिन नाम बदलने से किसी की जाति नहीं बदलती, जब तक कि वह समाजिक रूप से किसी अन्य जाति के रूप में स्वीकार न कर लिया गया हो, और उसकी नस्लीय-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पूरी तरह अलग न हो जाए।


💡 5. महत्वपूर्ण निष्कर्ष

🔸 चाहे वह ईसाई धर्म हो या इस्लाम –

अगर कोई व्यक्ति आदिवासी समुदाय से है, और उसकी वंशानुगत पृष्ठभूमि वैसी ही है,

तो वह ST प्रमाणपत्र के लिए पात्र है।

👉 धर्म बदलने से जातीय पहचान नहीं मिटती।


📚 संदर्भ व नीति दस्तावेज़

  • भारत सरकार के SC/ST/OBC Guidelines

  • संविधान का अनुच्छेद 15(4), 16(4), और 342

  • सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों के कई फैसले (जैसे Lilly Thomas vs Union of India)


🗣️ आपके लिए उपयोगी तर्क (जन-जागरूकता हेतु):

> "जैसे आदिवासी ईसाई बनने के बाद भी Munda या Oraon, Santhal, Mahli, रहते हैं,

वैसे ही मुस्लिम बनने के बाद भी उनका जातीय स्वरूप नहीं मिटता।

जाति एक सामाजिक पहचान है, धर्म एक व्यक्तिगत आस्था।"


अधिक जानकारी या अपने सवाल को कॉमेंट में लिखें।

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