
1 Day Social and Constitutional Training Camp
- S S Mahali
- 3 दिन पहले
- 4 मिनट पठन

आज दिनांक 18 मई 2025 रविवार को पावड़ा माझी परगना महल भवन में Majhi Pargana Mahal One-Day Social and Constitutional Training Camp – 2025 का सफल आयोजन किया गया। इस एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में समाज के पारंपरिक पदाधिकारियों, युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भारी संख्या में भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ सुबह 9:00 बजे उद्घाटन एवं परिचय सत्र से हुआ। इसमें घाट परगना बाबा लखन मार्डी और सहयोगियों ने नेहोर सेरेन के साथ उपस्थित जनसमूह को समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक नींव पर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने परंपरा, संस्कृति और सामाजिक एकता की महत्ता को विस्तारपूर्वक समझाया।
प्रथम सत्र: सामाजिक प्रणाली और विकास
समय: 9:30 AM – 11:00 AM इस सत्र में दो मुख्य विषयों पर प्रकाश डाला गया:
आदिवासी समाज में सामाजिक विकास का स्वर्णिम मार्ग,
सामाजिक परिवर्तन में युवाओं की भूमिका
पारगना ने बताया कि आज के युवाओं को परंपरा को समझते हुए नए समाज का निर्माण करना होगा। यह समय है जब आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाकर समाज को आगे बढ़ाया जाए।
द्वितीय सत्र: अनुसूचित क्षेत्र का प्रशासनिक ढांचा
समय: 11:00 AM – 1:00 PM मुख्य वक्ता: माझी होपोन सुकुमार सोरेन इस सत्र में निम्नलिखित विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई:
हूल विद्रोह का इतिहास और वीर आदिवासी नेताओं की स्मृति
पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका)
वन अधिकार अधिनियम 2006
आदिवासी अधिकार एवं स्थानीय स्वशासन प्रणाली
सुकुमार सोरेन ने परंपरागत शासन व्यवस्था की विशेषताओं को बताते हुए वर्तमान संवैधानिक ढांचे के साथ उनके संबंधों पर भी प्रकाश डाला।
तृतीय सत्र: संविधान और अधिनियम
समय: 2:00 PM – 4:00 PM मुख्य वक्ता: जोग माझी शंकर सेन माहली इस सत्र का मुख्य विषय रहा –"संवैधानिक जागरूकता और आरटीआई 2005 की शक्ति" ke बारे में माहली ने बताया कि किस प्रकार संविधान हमारे अधिकारों का संरक्षक है और प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी होना चाहिए। उन्होंने यह भी समझाया कि RTI (सूचना का अधिकार) एक शक्तिशाली उपकरण है जिससे हम पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकते हैं।
चतुर्थ सत्र: खुला संवाद एवं समापन
समय: 4:00 PM – 5:00 PMइस सत्र में उपस्थित सभी प्रतिभागियों को अपने विचार साझा करने का अवसर मिला। समाज के कई युवाओं और बुजुर्गों ने अपने अनुभवों, समस्याओं और सुझावों को खुलकर रखा। कार्यक्रम के समापन पर देश परनिक बाबा ने आभार व्यक्त किया और सभी को Sagun Johar के साथ विदा किया।
इस सत्र में माहली ने उपस्थित पारंपरिक पदाधिकारियों, युवाओं और समाज के लोगों को भारत के संविधान के महत्त्वपूर्ण अनुच्छेदों तथा आदिवासी समुदाय से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उनका मुख्य उद्देश्य था लोगों को संवैधानिक अधिकारों, कर्तव्यों और स्वशासन के अवसरों के प्रति सजग करना।
मुख्य संवैधानिक अनुच्छेदों पर प्रस्तुति:
1. अनुच्छेद:
(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
[ (2) राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।]
(3) भारत के राज्यक्षेत्र में,
(क) राज्यों के राज्यक्षेत्र,
[(ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और]
(ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे।
माहली ने बताया कि अनुच्छेद 1 में भारत को राज्यों का संघ घोषित करता है। आदिवासी क्षेत्रों को भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु इनकी संरचना और अधिकार अलग हैं, जिन्हें विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है।
3. अनुच्छेद 12 एवं 13:
अनुच्छेद 12: राज्य की परिभाषा देता है – जिसमें केंद्र, राज्य सरकारें, पंचायत, नगरपालिकाएं और उनके अधीन संस्थाएं शामिल हैं।
अनुच्छेद 13: मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई भी कानून शून्य होगा।
शंकर सेन महली ने बताया कि यह आदिवासी समुदाय को मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सशक्त बनाता है।
4. अनुच्छेद 243 (M) और (XZ): को संक्षिप्त में बताया कि 243(M): अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत अधिनियम की छूट हैं।
243(XZ): अनुसूचित क्षेत्रों में नगरपालिका व्यवस्था की छूट हैं, और दोनों अनुच्छेद के पैरा में संसद विधि के द्वारा ही लागू हो सकता हैं। अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत प्रणाली पर विशेष अपवाद और व्यवस्था है, जिससे पारंपरिक ग्रामसभा को प्रमुख भूमिका मिलती है।
5. अनुच्छेद 244(1):
पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन।
शंकर सेन महली ने बताया कि यह अनुच्छेद आदिवासी क्षेत्रों को विशेष प्रशासनिक संरचना देता है, जिससे उन्हें सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संरक्षण मिलता है।
6. अनुच्छेद 244(2):
छठवीं अनुसूची के अंतर्गत पूर्वोत्तर के आदिवासी स्वायत्त जिलों का प्रावधान।
पाँचवीं और छठी अनुसूची पर प्रकाश:
पाँचवीं अनुसूची:
झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू।
इसमें गवर्नर की शक्तियाँ, Tribes Advisory Council (TAC) का गठन, और केंद्रीय कानूनों से छूट की व्यवस्था शामिल है।
छठी अनुसूची:
उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम) में स्वायत्त जिला परिषदों का निर्माण।
माहली ने सुझाव दिया कि इस मॉडल से प्रेरणा लेकर झारखंड में भी अधिक अधिकारयुक्त ग्राम सभाओं का विकास किया जाना चाहिए।
आदिवासी समुदाय के ज्वलंत मुद्दों पर प्रस्तुति:
1. पारंपरिक स्वशासन प्रणाली को मान्यता देने की आवश्यकता।
2. भूमि अधिग्रहण एवं विस्थापन से आदिवासियों की आजीविका पर संकट।
3. वनाधिकार अधिनियम 2006 का सही क्रियान्वयन न होना।
4. शैक्षणिक और सांस्कृतिक पहचान पर संकट।
5. PESA कानून (1996) का सही ढंग से लागू न होना।
माहली ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट किया कि संविधान में आदिवासी समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के पर्याप्त प्रावधान हैं, लेकिन जब तक लोग स्वयं जागरूक नहीं होंगे और ग्रामसभा को मजबूत नहीं करेंगे, तब तक इन प्रावधानों का लाभ पूरी तरह नहीं मिल पाएगा। उन्होंने सभी उपस्थित लोगों से अपील की कि वे संविधान, परंपरा और सामाजिक न्याय को लेकर सजग रहें और अपनी विरासत को बचाकर रखें।
उपस्थित विशेष जन: देबेन बास्के (माझी बाबा), दुर्योधन टुडू, बिनी मार्डी, होपना बेसरा, दुलाराम बेसरा सहित दर्जनों ग्रामवासी उपस्थित थे। कार्यक्रम ने सामाजिक चेतना को नई दिशा दी और संविधान के साथ परंपरा के समन्वय को मजबूत करने का संदेश दिया।
_ऐसे ही_
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