पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था और पेसा अधिनियम पर चर्चा

झारखंड पंचायती राज विभाग द्वारा दिनांक 20 , 21 जनवरी 2025 को आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला ने राज्य की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा अधिनियम) के महत्व को रेखांकित किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न समुदायों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख जैसे माझी परगना व्यवस्था, मांझी मुंडा व्यवस्था, डोकलो - सोहोर व्यवस्था, राजी - पहाड़ा व्यवस्था और अन्य आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ
कार्यशाला का उद्घाटन पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ किया गया। माहली आदिवासी समुदाय के देश परगना मन कन्हू राम मार्डी, निदेशक पंचायती राज निशा उरांव, माझी परगना महाल के प्राणिक पंचानन सोरेन, राजी पहाड़ा प्रमुख महादेव मुंडा, डोकलो - सोहोर के प्रमुख कलावती खड़िया एवं अन्य पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख सदस्यों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। उद्घाटन के दौरान वक्ताओं ने पारंपरिक स्वशासन की महत्ता और आधुनिक कानूनी व्यवस्थाओं के साथ इनके समन्वय पर जोर दिया।

पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर चर्चा
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं को पेसा अधिनियम और नियमावली के प्रावधानों के साथ सशक्त करना है। उपस्थित प्रतिनिधियों को उनके समुदायों में स्वशासन की भूमिका, अधिकार और कर्तव्यों के प्रति प्रशिक्षित किया गया। पारंपरिक व्यवस्थाओं के प्रतिनिधियों को यह समझाया गया कि कैसे वे पेसा अधिनियम के तहत ग्राम सभाओं को अधिक प्रभावी बना सकते हैं।
पेसा अधिनियम 1996 और नियमावली का प्रशिक्षण
कार्यशाला में पेसा अधिनियम 1996 की सभी धाराओं पर विस्तृत चर्चा की गई। यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को अधिकार प्रदान करता है ताकि वे स्थानीय संसाधनों और सामाजिक मुद्दों पर निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।
मुख्य विषय:
ग्राम सभा के अधिकार और दायित्व।
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन।
भूमि अधिग्रहण और विकास योजनाओं में ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता।
सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन और पारंपरिक रीति-रिवाजों का संरक्षण।
पेसा नियमावली के प्रारूप के तहत शामिल सभी बिंदुओं पर गहन चर्चा की गई और उपस्थित लोगों को उनके क्रियान्वयन के तरीकों का प्रशिक्षण दिया गया।

पारंपरिक स्वशासन को सशक्त करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
कार्यशाला में यह निर्णय लिया गया कि पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं के प्रमुख, जैसे माझी बाबा और अन्य प्रतिनिधि, अपने-अपने क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेंगे। इन कार्यक्रमों के माध्यम से अन्य सदस्यों और ग्राम सभा के लोगों को पेसा अधिनियम और उसके नियमों के प्रति जागरूक किया जाएगा।

कार्यशाला का महत्त्व
इस कार्यशाला ने पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं और आधुनिक पंचायत व्यवस्था के बीच समन्वय की आवश्यकता को उजागर किया। यह कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण कदम था जो झारखंड के आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में योगदान देगा। झारखंड के विभिन्न जिलों से 5वी अनुसूची के जानकार एवं पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के सदस्य उपस्थित थे। पूर्वी सिंहभूम से पंचानन सोरेन, विजय कुजूर, कृष्णा हांसदा, माझी बाबा सिंधु हांसदा, माझी बाबा गोपाल मुर्मू, शंकर सेन माहली, बासेत मुर्मू, रामचंद्र सोरेन, विजय टुडू एवं अन्य शामिल थे।

झारखंड पंचायती राज विभाग का यह प्रयास पारंपरिक स्वशासन व्यवस्थाओं को सशक्त करने और पेसा अधिनियम के तहत अधिकारों को लागू करने की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह कार्यशाला न केवल पारंपरिक और कानूनी व्यवस्थाओं के बीच तालमेल बनाने में सहायक सिद्ध होगी, बल्कि आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर स्वशासन की दिशा में एक नई प्रेरणा भी प्रदान करेगी।
_ऐसे ही_
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