महात्मा गांधी, जिन्हें प्यार से "बापू" कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, और उनकी जयंती हर साल 2 अक्टूबर को पूरे भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन को न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर अहिंसा और शांति के प्रतीक के रूप में मान्यता दी जाती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया है, जो गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों को सम्मानित करता है।
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। गांधीजी का जीवन आदर्शों और संघर्षों से भरा रहा। वे सत्य, अहिंसा, और स्वराज के प्रतीक बने और भारतीय समाज में बदलाव लाने के लिए उन्होंने अपने जीवन को एक मिशन के रूप में जिया।
उनकी सादगी, चरखे से सूत कातने की प्रेरणा, और आत्मनिर्भरता का संदेश भारतीय जनता के दिलों में गहराई से बैठ गया। उन्होंने दांडी मार्च (1930) जैसे आंदोलनों के जरिए अंग्रेजों के नमक कानून का विरोध किया, और "करो या मरो" (Quit India Movement, 1942) के नारे के साथ स्वतंत्रता की मांग को और तेज किया।
अहिंसा का सिद्धांत
महात्मा गांधी का जीवन अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित था। वे मानते थे कि किसी भी प्रकार की हिंसा, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने समाज में सुधार और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा को सबसे प्रभावी साधन माना।
अहिंसा उनके जीवन का एक ऐसा मूलमंत्र था जिसने उन्हें विश्व स्तर पर एक अद्वितीय स्थान दिलाया।
वर्तमान समय में हम गांधीजी के जीवन से यह सीख सकते हैं कि समाज में शांति और समृद्धि लाने के लिए केवल बाहरी संघर्ष की आवश्यकता नहीं, बल्कि आत्म-संयम और सही दिशा में सोचने की भी जरूरत है।
आज के समय में कई लोग महात्मा गांधी के आदर्शों को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखते हैं, जिससे उनकी वास्तविक शिक्षाएं और मूल्यों का महत्व कहीं खो सा गया है। गांधीजी का जीवन सत्य, अहिंसा, सादगी और नैतिकता का प्रतीक था, लेकिन आज उनकी छवि को केवल रुपये और आर्थिक नीतियों तक सीमित कर दिया गया है।
भारतीय मुद्रा पर गांधीजी की तस्वीर जरूर है, लेकिन यह दुख की बात है कि लोगों ने उनके आदर्शों को व्यवहार में अपनाने के बजाय सिर्फ पैसों से जोड़कर देखना शुरू कर दिया है। गांधीजी का लक्ष्य समाज में नैतिकता, समानता और सच्चाई की स्थापना करना था, न कि केवल आर्थिक प्रगति की ओर ध्यान देना।
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में, गांधीजी के सिद्धांत जैसे आत्मनिर्भरता और सादगी, जो पहले समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे, उन्हें लोग अब केवल आर्थिक फायदे और धन-संपत्ति से जोड़कर देखते हैं। असल में, गांधीजी ने हमें यह सिखाया कि जीवन में वास्तविक मूल्य धन से नहीं, बल्कि नैतिकता, सच्चाई और सेवा से आता है।
2 अक्टूबर, गांधी जयंती, केवल एक दिन नहीं, बल्कि उन मूल्यों को याद करने और आत्मसात करने का अवसर है जो महात्मा गांधी ने अपने जीवन के माध्यम से हमें दिए। उनकी अहिंसा, सत्य, और समानता की शिक्षा आज भी समाज में बदलाव लाने की ताकत रखती है।
गांधीजी के जीवन और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर हम अपने समाज को एक बेहतर, शांतिपूर्ण, और समतामूलक बना सकते हैं। उनकी शिक्षा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी धरोहर है, जिसे संजोना और पालन करना हर भारतीय का कर्तव्य है।
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