
हम आदिवासी... और हमारी भूल!" 🌿
- S S Mahali
- 27 जून
- 4 मिनट पठन
✊ "हम आदिवासी... और हमारी भूल!" 🌿
भूल चुके हैं, सिद्दो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानों का हूल 🏹

आदिवासी समाज अपनी जड़ों से कटकर दिकू संस्कृति की ओर क्यों बढ़ रहा है?❓
आज का आदिवासी समाज एक गहरे आत्मविरोध और सांस्कृतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। वह समाज जो कभी जंगलों, नदियों, पर्वतों और प्रकृति से सीधा संवाद करता था, आज धीरे-धीरे अपनी परंपराओं से कटता जा रहा है और दिकू (गैर-आदिवासी) समाज की नकल में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
सबसे दुखद पहलू यह है कि आज कई आदिवासी युवा रथ यात्रा जैसे आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे न केवल रथ खींचते हैं, बल्कि सोशल मीडिया पर इसे बड़े गर्व से प्रचारित भी करते हैं। पर जब बात आती है हूल क्रांति दिवस, सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, या बीर बुधु भगत जैसे अपने नायकों की याद करने की — तो वे मौन हो जाते हैं।
यह विडंबना दर्शाती है कि आज का आदिवासी समाज अपनी संस्कृति, परंपरा और पहचान को त्यागकर दूसरों की संस्कृति को ही "विकास" मान बैठा है। हम इतनी ऊर्जा रथ की रस्सी खींचने में लगाते हैं, काश उतनी ही ताकत अपने समाज की दिशा सुधारने, संगठित होने और हूल की भावना को जीवित रखने में लगाते — तो आज हम इतने पिछड़े नहीं होते।
हमारी सभ्यता और विरासत की जड़ें कमजोर इसलिए हो रही हैं क्योंकि हम उन्हें सींचने की बजाय उखाड़ रहे हैं। जब तक हम अपनी परंपरा को गर्व से नहीं अपनाएंगे, तब तक हम केवल भीड़ का हिस्सा रहेंगे, नेतृत्वकर्ता नहीं।
आज के समय में आवश्यक है कि हम अपने समाज की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करें, अपनी जड़ों से जुड़ें और अपनी अस्मिता के रथ को खुद खींचें। यही आदिवासी समाज के पुनर्जागरण का मार्ग है।
🚩 रथ यात्रा आएगी —
हममें से कई आदिवासी भाई बहन इसमें हिस्सा लेंगे,
▪️ पोस्ट करेंगे,
▪️ स्टेटस लगाएंगे,
▪️ रथ खीचेंगे,
▪️ और गर्व से कहेंगे — "हम भी रथ में थे!"
लेकिन...
वही आदिवासी लोग 🩸 30 जून के दिन, अपने अपने घरों में दुपके हुई रहेंगे। जिस दिन सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, चांद-भैरव, जैसे हमारे नायक अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी जमीन, पहचान, और अस्तित्व को बचाने के लिए हूल क्रांति की शुरुआत किए थे।
उस दिन...
▪️ न कोई पोस्ट करता है,
▪️ न कोई झंडा लहराता है,
▪️ न कोई जुलुस निकालता है,
▪️ और न ही कोई श्रद्धांजलि देता है। 🤔
❗ क्यों?❓
क्योंकि हमने अपने असली इतिहास को भुला दिया है।
हम अब दिकुओं के पर्व मनाते हैं और अपने शहीदों की कुर्बानी को भुलाकर खुद ही अपनी आदिवासियत को मिटा रहे हैं।
💔 हमने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी 🪓मार रहें है।
👉 हम खुद अपने पतन के ज़िम्मेदार हैं।
🌾 जब तक हम अपने इतिहास, अपने नायकों, और अपनी संस्कृति को पहचान कर उसका सम्मान नहीं करेंगे,
हम केवल भीड़ बनकर रह जाएंगे।
ना आत्मा बचेगी, ना पहचान।
📢 अब भी समय है जागने का!
🌿 हूल क्रांति दिवस को सिर्फ तारीख नहीं,
बल्कि जागृति का दिन बनाएं।
अपने बच्चों को बताएं कि
हम कौन हैं,
हमारे नायक कौन थे,
और हमें किसने बचाया।
🛕 रथ यात्रा क्या है?
यह एक हिंदू धार्मिक उत्सव है, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा के रूप में मनाया जाता है।
इसमें भारी भीड़ होती है, शोभायात्रा निकाली जाती है, रस्सी खींची जाती है, और भक्ति गीत गाए जाते हैं।
लेकिन यह त्योहार आदिवासी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। यह दिकू समाज की धार्मिक परंपरा है।
✊ हूल दिवस क्या है?
30 जून 1855 को सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, चांद-भैरव जैसे वीरों ने अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ हूल क्रांति शुरू की थी।
यह आदिवासी अस्मिता, बलिदान, संघर्ष और आज़ादी की चेतना का प्रतीक है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारी ज़मीन, भाषा, संस्कृति और अस्तित्व को किस कीमत पर बचाया गया।
🤔 फिर सवाल उठता है — "रथ यात्रा या हूल दिवस?"
✔️ रथ यात्रा में शामिल होकर हम क्या जताना चाहते हैं?
कि हम अपनी परंपरा भूलकर दूसरों की संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं?
✔️ हूल दिवस को भूल जाना क्या हमें कमजोर नहीं कर रहा? क्योंकि जो समाज अपने शहीदों को भूल जाता है, वह खुद इतिहास से मिट जाता है।
✅ उत्तर साफ है — हूल दिवस!
हूल दिवस ही हमारी पहचान है।
हूल दिवस ही हमारा स्वाभिमान है।
हूल दिवस ही हमारी आज़ादी की नींव है।
🙏 इसलिए हम आदिवासी समाज को चाहिए कि वह रथ की रस्सी नहीं, बल्कि हूल की मशाल थामे और अपनी आने वाली पीढ़ियों को गर्व से बताए कि
"हम सिदो-कान्हू के वंशज हैं — रथ खींचने वाले नहीं, क्रांति 🏹 करने वाले हैं!"
आज की आदिवासीयों की स्थिति पर लिखित एक कविता।
रथ की डोरी खींच रहे हैं, भूल गए इतिहास को,
जो मिटा गए थे जंगल-गांव, उन बेइमान प्यास को।
सिदो - कान्हू की आवाज़ अब भी, जंगलों में गूंज रही हैं,
फूलो-झानो की चीखों से, धरती अब भी सूज रही हैं।
हूल का मतलब बगावत है, अन्याय के खिलाफ खड़ा होना हैं,
अपनी जमीन, अपनी अस्मिता के लिए, आख़िरी दम तक लड़ना हैं।
आज हम भूल चुके हैं, वो बलिदान की कहानी,
रथ में लगे हैं तस्वीरे, पर खो दी अपनी निशानी।
अब भी वक़्त है भाई मेरे, जागो और संभालो अपनी धरोहर को,
वरना कल यही पीढ़ी पूछेगी – "क्या किया हमारे गौरव को?"
आओ फिर एक प्रण ले,
हूल दिवस को अपनाएंगे।
सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानों का नाम को नहीं मिटने देंगे..
स्लोगन (नारा) 🗣️
"रथ नहीं, हूल हमारा गर्व है!
सिदो-कान्हू, फूलो-झानो अमर हैं!"
📢 "जो अपने शहीदों को भूलेगा,
वो आदिवासी नहीं कहलाएगा!"
✊"दिकुओं की रथ में खिंचना छोड़ो,
हूल के परचम को फिर से जोड़ो!"
जोहार 🙏
✊S S Mahali 🏹
ऐसे ही
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