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माझी रामदास टुडू रास्का

लेखक की तस्वीर: S S MahaliS S Mahali

रामदास टूडू रास्का:

संताली समाज के महान सुधारक और सांस्कृतिक धरोहर


रामदास टूडू रास्का का नाम संताली समाज के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1854 को झारखंड के काड़ूवाकाटा गांव में हुआ था। वे एक प्रबुद्ध लेखक, समाज सुधारक, और ग्राम प्रधान थे, जिन्होंने संताली समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को संरक्षित रखने के लिए अथक प्रयास किए।


खेरवाड़ बोंसो धरम पुथी: एक क्रांतिकारी रचना

रामदास टूडू रास्का की सबसे प्रमुख कृति "खेरवाड़ बोंसो धरम पुथी" (1894) है, जो संताली समाज के पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक व्यवस्थाओं का संकलन है। इस पुस्तक ने संतालों की सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह पुस्तक एक प्रकार से संताल समाज में नव जागरूकता और एकता का प्रतीक बन गई। रामदास टूडू ने इस रचना के माध्यम से संताल समाज के लोगों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ा, जिससे समाज को एक नई दिशा और मजबूती मिली।

धर्मांतरण से समाज की रक्षा

रामदास टूडू रास्का ने केवल साहित्यिक योगदान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि वे धर्मांतरण के खिलाफ भी दृढ़ता से खड़े हुए। 19वीं शताब्दी के दौरान, जब मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की गतिविधियां हो रही थीं, उन्होंने संताल समाज के लोगों को उनके पारंपरिक धर्म से जोड़े रखा और समाज को विभाजन से बचाया। उनका यह योगदान संताल समाज की धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान को बचाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण था।


सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक

रामदास टूडू न केवल एक महान लेखक थे, बल्कि वे एक अद्भुत कलाकार भी थे। वे संताली नृत्य, संगीत, और पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाने में भी निपुण थे। उनके इन गुणों ने संताल समाज की सांस्कृतिक धरोहर को और मजबूत किया। वे मानते थे कि समाज की सांस्कृतिक पहचान उसकी जड़ों से जुड़ी होती है, और इसे संरक्षित रखना बेहद जरूरी है।


रामदास टूडू रास्का की विरासत

रामदास टूडू रास्का का जीवन संताली समाज के उत्थान और उसकी सांस्कृतिक समृद्धि को समर्पित था। उनका प्रयास न केवल उस समय के समाज के लिए प्रेरणादायक था, बल्कि आज भी उनकी विरासत जीवंत है। उनकी मृत्यु 12 मई 1951 को हुई, लेकिन उनके द्वारा स्थापित मूल्य और उनकी शिक्षाएं आज भी संताली समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं।


आज की प्रासंगिकता

रामदास टूडू रास्का के योगदानों को याद करने के लिए हर साल उनके जन्मदिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में उनके जीवन और कार्यों पर चर्चा होती है और संताली समाज को उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती है। उनके लेखन और विचारों ने समाज में एकता और जागरूकता की एक मिसाल कायम की, जो आज के समय में भी प्रासंगिक है।


रामदास टूडू रास्का का जीवन और उनका कार्य न केवल संताली समाज के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। वे उन गिने-चुने लोगों में से थे जिन्होंने अपने समाज को जागरूक किया, उसे उसकी जड़ों से जोड़ा और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए अनवरत प्रयास किया। उनकी स्मृति और योगदान हमें यह याद दिलाते हैं कि किसी भी समाज की पहचान उसकी संस्कृति, धर्म, और रीति-रिवाजों में निहित होती है, और उसे संरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य है।


जोहार !



 
 
 

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