
महली समाज की निष्क्रियता
- S S Mahali

- 30 जुल॰
- 7 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 31 जुल॰
"महली समाज की निष्क्रियता – एक मौन, विनाश की ओर"

हाल ही में एक प्रेरणादायक पहल सामने आई है जिसमें झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री एवं संथाल समाज के विधायक श्री रामदास सोरेन ने माझी परगना महाल के देश परगना बैजू मुर्मू को विधायक निधि से खरीदा गया ₹11.35 लाख की कीमत वाला बोलेरो वाहन सौंपा। इस वाहन का उपयोग ग्राम स्तर पर सामाजिक पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को मज़बूत करने में किया जाएगा। यह केवल एक वाहन का भेंट नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण है।
इसी कड़ी में, जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती बारी मुर्मू ने पहले से ही ऐलान किया था कि यदि यह वाहन उपलब्ध कराया जाता है, तो वह उसके संचालन के लिए हर महीने ₹10,000 का सहयोग देंगी। अपनी प्रतिबद्धता निभाते हुए उन्होंने स्वतः ₹10,000 नगद प्रदान किया और भविष्य में इसे हर माह खाते में भेजने का आश्वासन भी दिया।
इस पहल का असली सार क्या है?
यह उदाहरण सामाजिक नेतृत्व, सहयोग, और सामुदायिक चेतना का आदर्श रूप है। ये दोनों लोग जानते हैं कि समाज को चलाने और संरक्षित करने के लिए केवल विचार नहीं, योगदान जरूरी होता है। चाहे वो आर्थिक हो, मानसिक हो या शारीरिक— हर प्रकार का सहयोग समाज को आगे बढ़ाता है।
अब सवाल हमारे महली समाज से...?
जब हम इस प्रेरक उदाहरण को देखते हैं और अपने महली समाज की स्थिति से तुलना करते हैं, तो कड़वा सच सामने आता है—हमारे समाज में ऐसी सामाजिक चेतना और सहयोग की भावना नदारद है। हमारे समाज के अनेक लोग आज सरकारी पदों पर, नौकरी में, निजी संस्थानों में, उच्च शिक्षा में स्थान पा चुके हैं—पर जब बात आती है समाज के लिए कुछ करने की, तो सबका मुंह दूसरी दिशा में होता है।
कोई कहता है—"समाज ने मुझे क्या दिया?"
कोई कहता है—"मेरे पास समय नहीं है।"
कोई ₹100 देना भी भारी समझता है।
हमें समझना होगा—
“जाति प्रमाण पत्र” बनवाने के लिए तो हम महली बन जाते हैं, आरक्षण का लाभ लेने के लिए ST कोटे का सहारा लेते हैं, लेकिन जब समाज को कुछ लौटाने की बात आती है, तो हम ‘मुझे क्या लेना देना’ कहकर किनारा कर लेते हैं।
महली समाज के लिए हमारी भूमिका कुछ ऐसी होनी चाहिए: किसी भी समाज की असली पहचान उसकी एकता, चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना से होती है। जब कोई समाज अपने लोगों के व्यक्तिगत विकास को सामूहिक उत्थान से जोड़ लेता है, तब वह समाज न केवल तरक्की करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा बनता है। इसी सिद्धांत पर चलकर संथाल समुदायों ने खुद के समाज को संगठित किया है, और आज उनके लोग चाहे विधायक हों, जिला परिषद सदस्य हों, सरकारी अधिकारी हों या साधारण कर्मचारी—हर स्तर पर अपने समाज के लिए तन, मन और धन से योगदान दे रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर, महली समाज, जो कि आदिवासी समाज की एक सशक्त लेकिन उपेक्षित जातीय पहचान है, आज भी सामाजिक बिखराव, आपसी ईर्ष्या, और स्वार्थी सोच के जाल में फंसा हुआ है। समाज के लोग धीरे-धीरे शिक्षा और सरकारी नौकरियों में तो आगे बढ़े हैं, लेकिन सामाजिक कर्तव्यों की भावना आज भी बेहद कमजोर है। कोई मुखिया बनता है, कोई पुलिस अधिकारी, कोई कर्मचारी या नेता—लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्होंने अपने समाज के लिए कोई ठोस पहल की है?
यह लेख महली समाज की इसी जड़ता और सामाजिक निष्क्रियता पर आधारित एक गहन आत्ममंथन है, जिसका उद्देश्य केवल आलोचना नहीं, बल्कि जागरूकता और परिवर्तन की दिशा में पहल करना है। समय आ गया है कि हम अपने समाज के प्रति अपनी भूमिका पर पुनः विचार करें और एकजुट होकर सामूहिक चेतना का निर्माण करें।
नाम बड़े—काम नहीं!
हमारे समाज में लोगों के नाम तो बड़े-बड़े होते हैं, पर समाज के कार्यशैली और सोच में समाज के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं दिखता।
न कोई संगठित प्रयास दिखता है,
न सामाजिक कार्यों में सहभागिता,
न आर्थिक योगदान,
न समाज की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश।
संथाल समाज से सीखिए
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हों या Lieutenant Governor जी.सी. मुर्मू, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन या फिर कोई MLA, MP, Zila Parishad, Panchayat Representative हो, यहां तक कि Teacher, Police, Clerk, Train Driver, TTC या कोई भी कर्मचारी क्यों न हो— हर कोई किसी न किसी रूप में अपने समाज से जुड़ा हुआ है और उसके हित में सक्रिय योगदान दे रहा है।
❖ "हमारे महली समाज के लोग जब मुखिया, जिला परिषद, विधायक, सांसद, अफसर, कर्मचारी बनते हैं, तो समाज के नाम पर क्या योगदान देते हैं❓"
उत्तर है: "लगभग शून्य (0) या बेहद सीमित।"
ना सामूहिक बैठकें,
ना सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी,
ना युवाओं के लिए कोई मार्गदर्शन,
ना ही कोई संस्थागत निर्माण।
❖ क्या ये स्थिति केवल संसाधन की कमी की वजह से है?
उत्तर है: बिलकुल नहीं।
महली समाज में आज कई लोग सरकारी नौकरी में हैं, —MLA, Zila Parishad, मुखिया, जैसे पदों पर पहुंचे हैं, शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर, पुलिस, कर्मचारी, कारोबारी हैं।
फिर भी…
> "सामाजिक चेतना और योगदान की भावना का भारी अभाव है।"
❖ समाज की बजाय खुद से जुड़ाव क्यों? जवाब है - निजी स्वार्थ और अलगाव की भावना – जैसे ही कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है, वह समाज से खुद को अलग समझने लगता है। सोचता है, "समाज ने मुझे क्या दिया?" जबकि सही सोच ये होनी चाहिए "मैं समाज को क्या दे सकता हूँ❓" दूसरे समाजों जैसे संथाल समाज में नेता से लेकर सामान्य कर्मचारी तक, समाज के लिए तन-मन-धन से योगदान देते हैं।
– जबकि महली समाज में ये भावना नहीं के बराबर है। “वो क्यों करे? उसका क्या फायदा है?” जैसी सोच आगे बढ़ने से रोकती है।
❖ समर्थन है, पर संकल्प नहीं
यह बात सत्य है कि हमारे महली समाज में भी सामर्थ्य है, लेकिन:
> संकल्प और इच्छाशक्ति की भारी कमी है।
कोई ₹1000 तो छोड़िए, ₹100 भी समाज के लिए देने में लोग पीछे हट जाते हैं।
समाज में कुछ करने की बजाय अपने नाम और पद का प्रदर्शन ज्यादा करते हैं। "समाज में कुछ भी हो जाए, लोग चुप रहते हैं, न कोई प्रतिक्रिया, न विरोध, न समर्थन—मानो सब कुछ स्वीकार है, या फिर सब कुछ अछूत है!"
🔇 मौन – मजबूरी नहीं, अब हमारी आदत बन चुकी है: महली समाज की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि न कोई आवाज उठाता है, न विरोध करता है, न एक शब्द बोलता है। ऐसे बर्ताव से यही प्रतीत होता है मानो "सांप 🐍सूंघ गया हो" या फिर जैसे लोग जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर मौन रहकर ही बचना चाहते हैं।
🤐 यह चुप्पी समाज को कहां ले जाएगी?❓
यह चुप्पी दमन को आमंत्रण देती है।
यह चुप्पी समाज को कमजोर और डरपोक साबित करती है।
यह चुप्पी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को अंधकार में ढकेलती है।
> यदि हम हर गलत पर चुप रहेंगे, तो कल हमारे हक भी छिन जाएंगे।
😔 सवाल ये नहीं कि कौन क्या कर रहा है, सवाल ये है कि…
हम क्यों नहीं बोलते?
हम क्यों प्रतिक्रिया नहीं देते?
हम क्यों संगठित होकर विरोध नहीं करते?
संथाल, मुंडा, हो समाज जैसे समुदायों को देखिए —
कोई अन्याय होता है तो पूरे गांव, टोला, पंचायत स्तर तक से आवाज उठती है। वे सड़कों पर उतरते हैं, ज्ञापन देते हैं, बैठकें करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं, मौन रहना पराजय है।
🛑 महली समाज – "मौन समाज" बन चुका है:
हमारी बैठकों में बोलने वाले गिने-चुने लोग होते हैं,
ज्यादातर लोग "हां में हां" मिलाते हैं या "मौन होकर घर चले जाते हैं"।
हमें कोई दिक्कत हो, तो भी हम "बोलने से डरते हैं",
और किसी अन्य की परेशानी हो, तो सोचते हैं—"मुझे क्या लेना-देना?"
🪔 अब जरूरत है मौन तोड़ने की:
✊🏼 अब चुप रहने का समय नहीं रहा।
🗣️ अब बोलना होगा—जिम्मेदारी से, सम्मान से और संगठन में रहकर।
अगर हम अब भी नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ी हमें यही कहेगी— > "हमारे पुरखे सिर्फ नाम के आदिवासी थे, उनमें आत्मसम्मान, साहस और सामाजिक चेतना नहीं थी।"
🧱 महली समाज: शक्ति का भंडार, लेकिन संगठित नहीं: यह कहना गलत नहीं होगा कि महली समाज में प्रतिभा, संसाधन और आत्मबल की कोई कमी नहीं है।
हमारे समाज के लोग शिक्षक, पुलिस, क्लर्क, कर्मचारी, मुखिया, पंचायत प्रतिनिधि, डॉक्टर, इंजीनियर, तकनीशियन हैं। कुछ तो विधायक और जिला परिषद जैसे पदों पर भी पहुंचे हैं। फिर भी, समाज के प्रति उनकी भूमिका या तो निष्क्रिय है या मौन। यह मौन केवल व्यक्तिगत दूरी नहीं, सामाजिक विफलता को भी दर्शा रहा है।
🗣️ अगर हम नहीं बोले, तो कौन बोलेगा?
जब संथाल, मुंडा, हो समाज जैसे समुदाय हर पंचायत स्तर पर संगठित होकर निर्णय लेते हैं, तो उनके समाज की समस्याएं शासन तक जाती हैं।
परंतु महली समाज में:
न गांव और पंचायत स्तर पर बैठकें होती हैं,
न कोई स्थायी संगठन सक्रिय है,
न कोई सामाजिक सहायता फंड है,
न कोई आवाज़ है।
हम केवल शिकायत करना जानते हैं, प्रतिक्रिया देना नहीं। मौन एक ऐसी चादर है जिसमें समाज के सारे जख्म छिपा दिए जाते हैं। महली समाज को अब इस चादर को उतार फेंकना होगा, अपने हक के लिए बोलना होगा, और अपने अस्तित्व की लड़ाई चुप्पी नहीं, चेतना और एकता से लड़नी होगी।
अब जरूरी है आत्ममंथन और सामूहिक पुनर्जागरण
यदि माहली समाज को बचाना है, विकसित करना है, अपनी पहचान को मजबूत करना है, तो हमें तीन महत्वपूर्ण बातें अपनानी होंगी:
1. सामाजिक संगठन:
एकजुटता के बिना कोई समाज आगे नहीं बढ़ता।
हमें गांव, प्रखंड, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर संगठित होने की आवश्यकता है।
2. सामाजिक योगदान:
समय, पैसे, कौशल—जो भी उपलब्ध हो, समाज के लिए निस्वार्थ भाव से समाज को देना होगा।
3. सामाजिक नेतृत्व:
जो भी किसी भी पद पर हैं, उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि उनकी सबसे पहली जवाबदेही समाज के प्रति है।
4. समाज के भीतर आत्मविश्वास का निर्माण करना।
5. प्रत्येक पंचायत स्तर पर सामाजिक चेतना और बैठकें शुरू करना।
6. महिलाओं और युवाओं को नेतृत्व की भूमिका में लाना।
7. सामाजिक अन्याय या भेदभाव के विरुद्ध सामूहिक आवाज उठाना।
8. महली समाज की खोई हुई जातीय पहचान और गर्व को पुनर्जीवित करना।
समाज केवल नाम से नहीं चलता — उसके पीछे त्याग, योगदान और प्रतिबद्धता छुपी होती है। अगर हम अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठे, तो कल को हमारे बच्चे भी यही कहेंगे - " हमारे परखें ने हमें क्या दिया?" और तब हम कुछ कहने लायक नहीं रहेंगे।
समाज को बचाना है तो समाज के लिए योगदान देना शुरू कीजिए। चाहे वो ( शारीरिक हो, मानसिक हो या आर्थिक ) आज नहीं तो कभी नहीं।
अधिक जानकारी/संपर्क करने के लिए अपना विवरण दें
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