मनीष कश्यप को झारखंड में बैन करने और आदिवासियों को हिंदू कहने से रोकने की मांग एक संवैधानिक और ऐतिहासिक सच्चाई को बनाए रखने की लड़ाई है। यह मांग इसलिए उचित है क्योंकि:
आदिवासी समुदाय की अलग पहचान: 🏞️
आदिवासी समाज की अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक पहचान है, जो हिंदू धर्म से पूरी तरह भिन्न है। सरना धर्म और अन्य आदिवासी धार्मिक परंपराएं प्रकृति-पूजा पर आधारित हैं, जिनका हिंदू धार्मिक परंपराओं से कोई संबंध नहीं है।
आर्यों का आगमन: 📜
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, आर्य भारत में प्रवासी थे, और वे भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी नहीं थे। आदिवासी इस भूमि के मूल निवासी हैं, और उन्हें आर्यों के साथ जोड़ना उनके इतिहास और पहचान का अपमान है।
संविधान का समर्थन: 🛡️
भारतीय संविधान के तहत आदिवासी समाज को विशिष्ट पहचान और अधिकार दिए गए हैं। उनके अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। आदिवासियों को हिंदू धर्म से जोड़ने की कोशिश संवैधानिक नियमों का उल्लंघन है, खासकर अनुच्छेद 25 के तहत, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
आदिवासी धर्म का सम्मान: 🤲
आदिवासियों के धर्म और परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्हें हिंदू धर्म के साथ जोड़ने की कोशिश उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान को कमजोर करने की साजिश है। सरना कोड की मांग आदिवासी समाज की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए है।
मनीष कश्यप के बयानों से आदिवासियों का अपमान: 🚫
मनीष कश्यप द्वारा दिए गए बयान और प्रचार आदिवासी समाज की पहचान और उनके अधिकारों का अपमान करते हैं। झारखंड सरकार को चाहिए कि वे ऐसे व्यक्तियों पर कार्रवाई करें, जो समाज को विभाजित करने और आदिवासी समाज की पहचान को धूमिल करने की कोशिश करते हैं।
मनीष कश्यप जैसे लोगों को झारखंड में बैन करना आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की रक्षा के लिए आवश्यक है। आदिवासियों को हिंदू कहने की कोशिशों को बंद करना चाहिए, और संविधान द्वारा दिए गए उनके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।
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