आदिवासी महिला के साथ घोर अमानवीयता घटना
1. घटना का विवरण
बालांगीर जिले के जूराबंधा गांव में 20 नवंबर को एक आदिवासी महिला के साथ न सिर्फ मारपीट हुई, बल्कि उसके साथ दुष्कर्म कर मुंह में जबरन मानव मल डाल दिया गया।
यह हमला तब हुआ जब महिला ने अपने खेत से ट्रैक्टर ले जाने का विरोध किया, जिससे उसकी फसल को नुकसान हो रहा था।
महिला पर हमला करने वाले गैर-आदिवासी व्यक्ति अभय बाग पर अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
2. न्याय की देरी और आदिवासी आक्रोश
घटना के चार दिन बाद भी पुलिस द्वारा कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है।
इस देरी ने आदिवासी समुदाय में गुस्सा और असंतोष बढ़ा दिया है।
क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन तेज हो रहे हैं, और पीड़िता के लिए न्याय की मांग हो रही है।
3. आदिवासी महिलाओं की असुरक्षा पर सवाल
यह घटना आदिवासी महिलाओं की असुरक्षित स्थिति को उजागर करती है।
एक महिला, जो अपनी आजीविका के लिए अपनी जमीन पर निर्भर है, को इस तरह से प्रताड़ित किया जाना बेहद शर्मनाक है।
यह हमारे समाज की सोच को दर्शाता है, जो आदिवासियों के अधिकारों और सम्मान को नकारता है।
4. भाजपा सरकार की जिम्मेदारी
ओडिशा में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री स्वयं आदिवासी मोहन चरण माझी हैं।
यह घटना दर्शाती है कि सत्ता में आदिवासी प्रतिनिधित्व होने के बावजूद जमीनी स्तर पर आदिवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार अक्सर आदिवासियों के कल्याण की बातें करती हैं, लेकिन यह घटना उनकी कथनी और करनी में अंतर को उजागर करती है।
5. आरएसएस और मनुवादी मानसिकता
यह घटना आदिवासियों के प्रति आरएसएस और मनुवादी सोच की नीति को भी दर्शाती है।
ऐसा लगता है कि आदिवासियों और दलितों के खिलाफ हिंसा और शोषण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मनुस्मृति आधारित विचारधारा को बढ़ावा देकर आदिवासियों को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है।
6. मीडिया और समाज का दोहरा रवैया
जब बंगाल की एक महिला के साथ अन्याय हुआ, तो देशभर में उसे समर्थन मिला।
लेकिन इस आदिवासी महिला के लिए न तो सेलिब्रिटी आगे आ रहे हैं और न ही समाज की मुख्यधारा से आवाज उठ रही है।
यह हमारे समाज में आदिवासियों के साथ भेदभावपूर्ण रवैये को उजागर करता है।
7. भविष्य के लिए चेतावनी
आदिवासी और दलित समुदायों को संगठित होकर अपने अधिकारों और सम्मान के लिए खड़ा होना होगा।
इस घटना से यह स्पष्ट है कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी।
यह सरकार और प्रशासन से जवाबदेही की मांग करने का समय है।
आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उड़ीसा की घटना पर चुप्पी 🤫
1. राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद की भूमिका पर प्रश्न 🏛️
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो एक आदिवासी महिला और उड़ीसा की बेटी हैं, को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी के तहत महिलाओं और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बोलना चाहिए।
उड़ीसा में महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं पर उनकी चुप्पी से यह सवाल उठता है कि क्या संवैधानिक पद केवल प्रतीकात्मक है?
2. उड़ीसा में महिलाओं के साथ अत्याचार: चुप्पी क्यों? 🤐
उड़ीसा, जहां से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आती हैं, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं।
हाल ही में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं ने पूरे देश का ध्यान खींचा, लेकिन राष्ट्रपति के स्तर पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई।
क्या यह चुप्पी आदिवासी समाज और महिलाओं के मुद्दों को अनदेखा करने का संकेत नहीं है?
3. आदिवासी और महिलाओं के लिए राष्ट्रपति की उम्मीदें 🌿
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से यह अपेक्षा थी कि वे आदिवासी और महिला मुद्दों पर मजबूती से बोलेंगी।
उनके पद पर पहुंचने से आदिवासी और महिलाओं को अधिकारों के लिए संघर्ष में एक उम्मीद जगी थी।
लेकिन उड़ीसा जैसी घटनाओं पर चुप्पी से यह भरोसा टूटता हुआ प्रतीत होता है।
4. राजनीतिक और सामाजिक दबाव का सवाल ⚖️
क्या राष्ट्रपति राजनीतिक दबाव के कारण चुप हैं?
जब उड़ीसा में महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है, तो उनके गृह राज्य से उनकी चुप्पी क्या यह दर्शाती है कि संवैधानिक पदधारी भी अपनी आवाज उठाने में स्वतंत्र नहीं हैं?
5. आदिवासी समाज के लिए संदेश 🗣️
राष्ट्रपति का चुप रहना आदिवासी समाज को यह संदेश देता है कि उनके मुद्दों को उच्च स्तर पर भी अनदेखा किया जा सकता है। इस चुप्पी से आदिवासी समुदाय और महिलाओं के संघर्ष और अधिक कठिन हो सकते हैं।
6. द्रौपदी मुर्मू के लिए जनता का प्रश्न ❓
उड़ीसा में महिलाओं पर हुए अत्याचार को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोई सार्वजनिक बयान क्यों नहीं दिया?
क्या राष्ट्रपति को अपने संवैधानिक दायित्वों के तहत इन मुद्दों पर सक्रिय भूमिका नहीं निभानी चाहिए थी?
अपील 🛡️
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से देश को अपेक्षा है कि वे न केवल आदिवासियों की बल्कि सभी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत कदम उठाएं।
उनके गृह राज्य उड़ीसा में महिलाओं पर हो रही घटनाओं पर उनकी चुप्पी आदिवासी और महिला समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करती है।
हम उनसे आग्रह करते हैं कि वे अपनी आवाज उठाएं और आदिवासी तथा महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में नेतृत्व करें।
"संवैधानिक पद का महत्व तभी है, जब वह समाज की आवाज को सुन सके और न्याय के लिए खड़ा हो।"
यह घटना सिर्फ एक महिला पर हमला नहीं है, बल्कि पूरे आदिवासी समाज पर हमला है। यह हमारे देश के लोकतांत्रिक और सामाजिक ताने-बाने के लिए एक गंभीर चुनौती है। अब समय है कि आदिवासी समुदाय संगठित होकर अपनी आवाज बुलंद करें और अपने सम्मान व सुरक्षा के लिए संघर्ष करें। #SSMahali.com
🛑 अन्याय के खिलाफ खड़े हों।
✊ आदिवासी अस्मिता की रक्षा करें।
💡 एकजुट होकर लड़ाई लड़ें।
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